झारखंड में एमएसपी पर धान की खरीद जारी है. इस बार राज्य में पड़े भंयकर सूखे के कारण धान की खेती प्रभावित होने के बावजूद राज्य सरकार मे 60 लाख क्विंटल धान खरीद का लक्ष्य रखा है. धान की खरीद की दिसंबर के आखिरी सप्ताह में शुरु हुई थी. इसके बाद से लेकर अब तक कुल 5 लाख 18 हजार 696 क्विटंल धान की ही खरीद हो पाई है. एक महीने से अधिक का समय बीत जाने के बाद भी अब तक धान खरीद के मामले में सरकार खरीद के लक्ष्य का 10स फीदी भी पूरा नहीं कर पाई है. इससे यह अब खड़ा होने लगा है कि क्या इस बार राज्य सरकार धान के खरीद के लक्ष्य को पूरा कर पाएगी या नहीं.
इस बार के धान खरीद के आंकड़ों की बात करें तो सबसे अधिक धान की खरीद हजारीबाग जिले में हुई है.यहा पर 59 धान खरीद केंद्रों से 1 लाख 34 हजार 584 क्विंटल धान की खरीद हो चुकी है. यहां पर धान बेचने के लिए 36080 किसानों ने पंजीकरण कराया था, इनमें से 12207 किसानों को धान बेचने से संबंधित मैसेज भेजे गए थे, जिनमें से 2941 किसानों धान बेचने के लिए खरीद केंद्रों तक पहुंचे हैं. इस इस तरह से देखा जाए तो धान खरीद केंद्रों तक किसान काफी संख्या में पहुंच रहे हैं. झारखंड में धान खरीद के लिए कुल दो लाख 31 हजार 176 किसानों ने रजिस्ट्रेशन कराया था. इनमे से एक लाख 20 हजार 596 किसानों को मैसेज भेजा गया जबकि मात्र 9672 किसानों ने ही अब तक धान बेचा है.
दुमका में मात्र 30 किसानों ने बेचा है धान
धान खरीद को लेकर सबसे खराब स्थिति इस बार दुमका में है. यहां पर 30 किसानों ने 2129 क्विंटल धान बेचा है. धान बेचने के लिए दुमका में 4046 किसानों ने रजिस्ट्रेशन कराया था, जबकि 791 किसानों को धान बेचने के लिए मैसेज भेजा गया था. दूसरे नंबर पर लोहरदगा है. यहां से मात्र 1007 क्विंटल धान की खरीद की गई है. कुल 34 किसानों ने ही यहां पर धान बेचा है. इन जिलों के अलावा बोकारो, देवघर और सरायकेला में धान बेचने वाले किसानों का आंकड़ा 100 से आगे नहीं गया है. जो यह दिखाता है कि किसान इस प्रक्रिया में रुचि नहीं ले रहे हैं.
धान खरीद की प्रक्रिया से दूर रहते हैं किसान
हालांकि झारखंड के अधिक से अधिक किसानों को लैंपस तक लाने के लिए सरकार प्रयास करती है पर लैंपस-पैक्स की खामियों की वजह से किसानों का भरोसा अब तक धान खरीद की प्रक्रिया पर नहीं हो पाया है. किसानों का कहना है कि लैंपस पैक्स में जब वो धान बेचने जाते हैं तो उन्हें सही समय पर पैसे नहीं मिलते हैं. जबकि अधिकांश किसान ऐसे होते हैं जो रबी की खेती करने के लिए या दैनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए धान बेचते हैं. दूसरी बात यह है कि कई बार किसान धान लेकर जाते हैं और उन्हें अपना धान लेकर वापस आना पड़ता है. क्योंकि लैंपस में भंडारण की व्यवस्था नहीं होती है. इस तरतह से किसानों को दोगुना पैसा किराया के तौर पर लगाना पड़ता है.